हैरियट वीचर स्टो
अनुवाद - हनुमान-प्रसाद-पोद्दार
1 - गुलामों की दुर्दशा
माघ का महीना है। दिन ढल चुका है। केंटाकी प्रदेश के किसी नगर के एक मकान में भोजन के उपरांत दो भलेमानस पास-पास बैठे हुए किसी वाद-विवाद में लीन हो रहे थे।
कहने को दोनों ही भलेमानस कहे गए हैं, पर थोड़ा ध्यान से देखने पर साफ मालूम हो जाएगा कि इनमें से एक की गणना सचमुच भले आदमियों में नहीं की जा सकती। यह आदमी देखने में नाटा और मोटा है। इसका शारीरिक गठन बहुत ही मामूली है। कपड़े-लत्तों से अलबत्ता खूब बना-ठना है। उसके और रंग-ढंग भी ऐसे हैं जिनसे जान पड़ता है कि यह बड़ा आदमी बनना चाहता है। लगता है, मानो इस समय धन इकट्ठा करके समाज के अंधकूप से बाहर निकलने की चेष्टा कर रहा हो। वह टूटी-फूटी और अशुद्ध अंग्रेजी में बातचीत कर रहा है। बीच-बीच में तरह-तरह के भद्दे और अश्लील शब्द भी उसके मुँह से निकल पड़ते हैं।
दूसरा आदमी घर का मालिक है। वह देखने में सज्जन जान पड़ता है। इसका नाम आर्थव शेल्वी है और पहले का हेली।
उन दोनों में देर से बातें हो रही थीं, पर हम बीच से ही आरंभ करते हैं। शेल्वी ने कहा - "मैं चाहता हूँ कि यही बात पक्की रहे।"
हेली बोला - "नहीं मिस्टर शेल्वी, हम इस बात को कभी नहीं मान सकते, कभी नहीं!"
शेल्वी - "क्यों, तुम सच्ची बात नहीं जानते। टॉम मामूली दास नहीं है। इन दामों पर तो मैं कहीं भी उसे सहज ही बेच सकता हूँ। वह बड़ा सच्चरित्र, ईमानदार और चतुर है। मेरे सारे काम बड़ी चतुराई से करता है।"
"अजी, बस करो, बहुत शेखी मत बघारो। गुलाम लोग जैसे सच्चरित्र और ईमानदार होते हैं, हम खूब जानते हैं। तुम्हारा टॉम ही कहाँ का अनोखा ईमानदार आ गया!"
"नहीं-नहीं, वास्तव में टॉम सच्चरित्र और धार्मिक है। बरसों से वह मेरा काम करता चला आया है, लेकिन कभी किसी काम में उसने मुझे धोखा नहीं दिया है।"
"हाँ साहब, यह तो ठीक है, पर बहुत लोगों का खयाल है कि हब्शी गुलामों को धर्म-कर्म का बिल्कुल ज्ञान नहीं होता है, लेकिन हम ऐसा नहीं समझते। अभी पिछले साल हम अर्लिंस में एक दास बेचने को ले गए थे। वह बड़ा ही धार्मिक और सीधा-सादा था। उसमें हमें खासा मुनाफा रहा। बेचनेवाले ने बड़े संकट में पड़कर हमारे हाथ बेचा था। इसी से सस्ते में हाथ लग गया और बेचने में हमें बड़ा फायदा रहा। खरे धर्म की बड़ी कीमत है। यह गुण होने से दासों के दाम भी बढ़ जाते हैं, लेकिन भाई, माल जरा होना चाहिए असली।"
शेल्वी बोला - "मैं कह सकता हूँ कि टॉम के जैसे सच्चे धर्मात्मा संसार में बहुत कम ही होंगे। अभी कल की बात है। मैंने उसे सिनसिनेटी में एक आदमी के यहाँ से अपने पाँच सौ रुपए लाने को भेजा था। वह फौरन रुपए लेकर लौट आया। वहाँ उसे कितने ही बदमाशों ने पाँच सौ रुपए लेकर चंपत हो जाने की पट्टी पढ़ाई, बहुतेरा बहकाया, पर उसने किसी की एक न सुनी। तुम्हीं कहो, ऐसे ईमानदार दास को क्या कोई अपनी इच्छा से बेचेगा? यह तो तुम्हारे कर्जे में जकड़ जाने से लाचार होकर बेचना पड़ रहा है। टॉम का मूल्य मेरे सारे कर्जे के बराबर है। तुममें समझ हो तो ऐसे गुण-संपन्न टॉम को लेकर मेरा पीछा छोड़ो।"
"भई, कारोबारी आदमी में जितनी समझ होती है, उतनी तो हममें भी है। पर इस साल बाजार की हालत उतनी अच्छी नहीं है, नहीं तो मैं तुम्हारा ही कहना मान लेता।" हेली ने लाचारी के स्वर में कहा।
"फिर तुम क्या कहना चाहते हो?"
"टॉम के साथ एक छोकरा या छोकरी नहीं दे सकते?"
"मेरे पास बेचने के लिए कोई लड़का-लड़की नहीं है। मैं अपने दास-दासियों को कभी नहीं बेचता। यह तो इस बार लाचारी की हालत में बेच रहा हूँ।"
अभी शेल्वी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि घर का दरवाजा खोलकर एक पाँच-छह वर्ष का वर्णसंकर बालक अंदर आया। देखने में वह बहुत सुंदर था। काले-काले घुँघराले बाल उसके कोमल चेहरे पर चारों ओर बिखरे हुए थे। उसकी दोनों काली-काली आँखें चमक रही थीं। उसकी आँखों से नम्रता और तेज टपक रहा था। उसके सादे-स्वच्छ वस्त्र मुख की सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे। बालक का लजीला और निडर स्वभाव देखते ही पता लग जाता था कि वह अपने मालिक का प्यारा है।
शेल्वी ने बालक को देखते ही कहा - "जिम, लेना यह।" और एक मुट्ठी किशमिश उसके सामने डाल दी। किशमिश उठाने के लिए बालक को लपकता देखकर उसका मालिक हँसने लगा। किशमिश उठा लेने के बाद शेल्वी ने उस बालक को अपने पास बुलाकर प्यार से कहा - "जिम, इन्हें जरा अपना नाच तो दिखला!"
बालक झट तैयार होकर ठुमुक-ठुमुक नाचने लगा। इस पर हेली बड़ा खुश हुआ, खूब वाह-वाह की और एक नारंगी उस लड़के को दी।
शेल्वी ने कहा - "अब जरा अपने कुबड़े चाचा की तरह कमर झुकाकर लकड़ी के सहारे चलने की नकल तो कर।"
देखते-देखते बालक ने मालिक की लाठी लेकर कुबड़ों के लाठी के सहारे चलने की हूबहू नकल कर दी। बालक की इस विचित्र बाल-लीला को देखकर शेल्वी और हेली दोनों खूब हँसे। इसी भाँति अपने मालिक की आज्ञा से बालक ने और भी कई नकलें करके दिखाईं।
यह सब देखकर हेली बोला - "वाहजी, खूब अलबेला छोकरा है यह तो! बस, इसी को टॉम के साथ दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी, एकदम छुट्टी! कसम से यही करो, सारा हिसाब चुकता हो जाएगा।"
इसी समय एक वर्णसंकर युवती धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर आई। वह बालक की माता जान पड़ती थी। दोनों की काली आँखें और घुँघराले बाल एक-से थे। हेली उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो, उसकी ओर आँखें गड़ाकर घूरने लगा। शर्म से युवती की आँखें नीची हो गईं। एक बार देखने में ही उसके अंगों की सुडौलता दास-व्यवसायी हेली के मन में घर कर गई।
शेल्वी ने आंगतुक स्त्री इलाइजा को देखकर पूछा - "इलाइजा, क्या चाहती हो?"
"मैं हेरी को ढूँढ़ने आई थी।" बालक पाई हुई चीजों को लेकर माँ के पास दौड़ गया।
शेल्वी ने कहा - "इसे ले जाओ।"
बालक को गोद में उठाकर युवती चली गई। इलाइजा के चले जाने पर हेली बोला - "कैसी सुंदर छोकरी है। इसे अर्लिंस में बेचो तो मालामाल हो जाओ। हमने हजार-हजार पर जिन छोकरियों को बिकते देखा है, वे भी इससे ज्यादा खूबसूरत नहीं होतीं।"
शेल्वी - "मैं इसे बेचकर धन इकट्ठा नहीं करना चाहता।"
"क्यों? बोलो, तुम इसे कितने का माल समझते हो? कितने पर सौदा करने को राजी हो? और बेचो तो क्या लोगे?"
शेल्वी - "मैं इसे कभी नहीं बेचूँगा। बराबर का सोना लेकर भी मेरी स्त्री इसे अलग नहीं करेगी।"
हेली बोला - "वाह उस्ताद, तुमने भी खूब कही! अरे, औरतें नफे-नुकसान की बातें क्या जानें! रुपए के मोल का उन्हें क्या पता! लेकिन तुम अपनी बीवी को एक बार समझाओ तो कि इसे बेच डालने पर कैसे बढ़िया-बढ़िया गहने और कपड़े हाथ लगेंगे। फिर मैं देखूँगा कि तुम्हारी बीवी इसे बेचना चाहती है कि नहीं।"
शेल्वी ने झुँझलाकर दृढ़ता से कहा - "हेली, तुमसे एक बार कह दिया कि मैं इसे नहीं बेचूँगा, फिर क्यों बेकार की बातें करते हो? एक बार जिस काम के लिए इनकार कर दिया, उसे फिर कभी नहीं करूँगा। सच मानो!"
इस पर हेली बोला - "अच्छा, बाबा, जाने दो। लड़के को तो दोगे न? हम ज्यादा दाम देकर इसे खरीद रहे हैं। तुम्हें बेचना ही पड़ेगा।"
शेल्वी - "तुम्हें इस लड़के की क्या जरूरत है?"
हेली - "हमारे एक दोस्त ने बेचने के लिए कुछ खूबसूरत लड़के माँगे हैं। सच कहता हूँ कि तुम्हारे जैसे बड़े आदमी बड़े शौक से ऐसे छोकरों को खरीदते हैं। बाजार में इनके बड़े दाम उठते हैं। फिर यह लड़का! यही तो असल में बेचने की चीज है। कैसा बढ़िया खिलाड़ी है, कैसा गाना गाता है।"
शेल्वी - "मैं इसे नहीं बेचना चाहता। मेरे दिल में कुछ दया है। इसे इसकी माँ की गोद से अलग करने की मेरी इच्छा नहीं है।"
हेली - "सो तो मै खूब समझता हूँ। इन सब नन्हें-नन्हें छोकरों को बेचने के वक्त इनकी माँ बहुत रोती-चिल्लाती हैं और तुम लोग इनका रोना सुनकर पिघल जाते हो। लेकिन जरा हिकमत से काम लिया जाए तो, तुम्हारे सिर की कसम, जरा भी हुल्लड़ नहीं मचता। सुनो, लड़के को बेचने के पहले उसकी माँ को कहीं टरका दो। फिर बच्चे को खरीदार के हवाले कर देने पर जब वह औरत घर लौटे तो उसे एक जोड़ा कर्णफूल या और कोई दिल-बहलाव की चीज खरीदकर दे दो। बस, उसका सारा दुःख-दर्द काफूर हो जाएगा, वह लड़के को याद तक नहीं करेगी। तुम्हारी कसम, यह सब तो हम लोगों के बाएँ हाथ का खेल है।"
शेल्वी ने दुःख के स्वर में कहा, मैं तो नहीं समझता कि इतने से उसके दिल को संतोष हो जाएगा।"
हेली बोला - "संतोष क्यों नहीं होगा? ये भी क्या कोई गोरे हैं? जरा चतुराई से काम लो तो बेड़ा पार है। बहुत लोग कहते हैं कि गुलामी का रोजगार मनुष्य को पत्थर बना देता है, पर यह सरासर झूठ है। बहुतेरे दास-व्यवसायी जरा-सी भावुकता में सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ बैठते हैं। सच कहता हूँ, उन्हें इससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। तुम्हारी कसम, चाल से काम न लेने की वजह से अर्लिंस में ऐसे ही एक व्यापारी के बहुत-से रुपए मिट्टी में मिल गए। उसने एक औरत खरीदी थी। उसका एक छोटा-सा लड़का था। लड़का दूसरे के हाथ बिका था। खरीदार ने लड़के को औरत की गोद से खींचकर फेंक दिया और उसकी मुश्कें कसकर घर ले गया। इसी से वह रो-रोकर पागल हो गई और आखिर में मर गई। नफे की उम्मीद पर जो एक हजार गिने थे, उसमें नफा तो गया भाड़ में, एक हजार में एक टका भी वसूल न हुआ। इसी से मैं जो करता हूँ, बड़े दावँ-पेंच के साथ करता हूँ। बोलो, यह क्या अक्लमंदी नहीं है? भगवान जानते हैं मेरे काम में कभी कोई टंटा बखेड़ा उठता ही नहीं। तुमने जो कहा, वह हमको भी ठीक जँचता है। दास-दासियों के साथ दया का बरताव तो करना ही चाहिए। हम किसी औरत की गोद से लड़का नहीं छीनते; बल्कि उसे किसी बहाने से दूसरी जगह टरका देते हैं और पीछे से लड़के को भी चंपत कर देते हैं। देख लो, इससे दया-माया, धरम-करम सब बने रहते हैं। हम हमेशा यों ही दया के साथ काम करते हैं। नुकसान किस चिड़िया का नाम है, हम जानते ही नहीं। बहुतेरे तो हमारी दया की बात का मजाक उड़ाते हैं। वे इसे दया नहीं, ढोंग बताते हैं। पर बताया करें, हमने कभी घाटा तो नहीं उठाया। दया से काम लेने से कभी पैसा बरबाद नहीं जाता। तुम्हीं कहो, हम झूठ कहते हैं?"
हेली की दया की डींग ने शेल्वी को हँसा दिया। शेल्वी का हँसना देखकर हेली का उत्साह दूना हो गया। उसने फिर बातों का सूत्र आगे बढ़ाया। कहने लगा - "यह बड़ा अचरज है कि लोग ये सब बातें समझते नहीं। पहले टॉम लोकर नाम का हमारा एक साझीदार था। यों तो इन कामों में वह बड़ा घाघ था, पर गुलामों के लिए तो कमबख्त यमराज ही था। हम उसे बहुत समझाते कि "टॉम, लड़कियाँ जब रोती हैं तब पीट-पीटकर उनका कचूमर निकालने से क्या फायदा? उनके रोने-धोने से अपना क्या बिगड़ता है? अरे रोना-धोना तो उनका काम ही है। वह तो कभी रुकने का नहीं। फिर नाहक ठोंक-ठोंककर उनका हुलिया बिगाड़ने से क्या फायदा! उलटा अपना ही नुकसान है।" हम उसे दो मीठी बातें करके काम निकालने के लिए बहुत समझाते। कहते कि कोड़ों की मार से जो काम नहीं निकलता, वह दो मीठी बातों से हो जाता है, किंतु टॉम पर इसका कोई असर न होता। आखिर जब उसके साझे में हमें घाटा होने लगा, तो हमने साझा तोड़ दिया। लेकिन भई, मन का बड़ा साफ और पक्का कामकाजी आदमी था वह। उसके मुकाबले का आदमी खोजे जल्दी नहीं मिल सकता, यों तो दुनिया भरी पड़ी है।"
शेल्वी - "तुम क्या टॉम लोकर से अच्छी तरह से काम चलाते हो?"
हेली - "बेशक, जहाँ जरा गड़बड़ जान पड़ती है, वहाँ हम बहुत सँभलकर काम लेते हैं। छोटे लड़के-लड़कियों को बेचने के समय हम उनकी माताओं को खिसका देते हैं। कहावत है न कि आँखों से दूर होने पर मन से भी दूर हो जाता है। गोरों की तरह लड़कों के साथ रहने की आशा करना काले गुलामों का काम नहीं। बराबर ऐसी शिक्षा पानेवाले गुलाम सपने में भी वैसी आस नहीं करते।"
शेल्वी बोला - "मालूम होता है, तब तो मेरे यहाँ के दास-दासियों ने सही शिक्षा नहीं पाई है।"
हेली - "हाँ, बेशक! तुम सारे केंटाकीवालों ने गुलामों को बिगाड़ रखा है। करना चाहते हो तुम भला, नतीजा होता है उल्टा। एक गुलाम आज यहाँ है, कल उसे टॉम ले जाएगा, परसों उसे डिक के घर जाना पड़ेगा और अगले दिन फिर किसी और का होगा। यों ही दुनिया का चक्कर काटता रहेगा। अगर तुम उसे खूब सुख देकर, उसके मन में कुटुंब के साथ रहने की आशा पैदा कर देते हो तो फिर वह तकलीफ सहने लायक नहीं रह जाता। तुम लोग कालों और गोरों का भेद मिटा देना चाहते हो। पर क्या यह कभी संभव है? काला गोरे की बराबरी कर सकता है? काला काला ही है, गोरा गोरा।"
अंग्रेज सौदागरों के दया-धर्म की गूढ़ व्याख्या करके ईसा से अपनी दयालुता की तुलना करते हुए हेली ने एक गिलास शेरी पीकर अपनी प्यास बुझाई और फिर शेल्वी से पूछा, हाँ, तो अब कहो, तुम क्या करोगे?"
शेल्वी ने कहा - "अपनी स्त्री से सलाह करके बताऊँगा। पर तुम किसी के सामने इन बातों की चर्चा मत करना। कहीं मेरी स्त्री के कानों तक यह बात पहुँच गई तो बड़ा बखेड़ा होगा। वह जीते-जी कभी दास-दासी बेचना स्वीकार न करेगी।"
हेली - "हम बहुत जल्दी दूसरी जगह जाना चाहते हैं। जो कुछ करना हो, आज ही तय कर डालो।"
शेल्वी - "अच्छा, तुम सात बजे आ जाना। जैसा होगा, बता दूँगा।"
हेली के जाने के उपरांत शेल्वी साहब मन-ही-मन सोचने लगे कि कर्ज भी बुरी बला है, जिसके पीछे टॉम जैसे स्वामिभक्त ईमानदार नौकर को इस दुष्ट के हाथ बेचना पड़ रहा है! यदि मैं इसका ऋणी न होता तो टॉम को बेचने की बात मुँह से निकालते ही मैं हंटरों से इसकी खबर लेता। पर इलाइजा के लड़के के बेचने की बात अपनी स्त्री से कैसे कहूँगा? वह तो इसे सुनते ही झगड़ने लगेगी।
इस समय केंटाकी प्रदेश में दक्षिण की भाँति दास-दासियों पर घोर अत्याचार नहीं होता था। लुसियाना आदि प्रदेशों में अंग्रेज बनिए, अधिक मुनाफे के लोभ में, गुलामों से दिन-रात काम लिया करते थे और जरा भी भूल होते ही पीठ की चमड़ी उधेड़ देते थे। पर केंटाकी प्रदेश के दो-एक सहृदय अंग्रेज दास-दासियों के साथ सदा अच्छा व्यवहार करते थे। दास-दासियों का भी अपने मालिकों पर प्रेम होता था। किंतु यह सब होने पर भी दासत्व-प्रथा से होनेवाले कष्टों में तनिक भी कमी न होती थी। देश के प्रचलित कानून के कारण कर्ज के लिए सहृदय अंग्रेजों के भी गुलामों को नीलाम होना पड़ता था। शेल्वी साहब बहुत निर्दयी न थे, बल्कि उन्हें मामूली तौर पर सहृदय कहा जा सकता था। दास-दासियों के साथ कठोर व्यवहार करके उनका हाथ कभी कलंकित नहीं हुआ था। पर इस समय वह बेचारे क्या करें, दास-व्यवसायी हेली के कर्ज में बुरी तरह से जकड़ गए थे। उससे छूटने के लिए दास-दासी बेचने के सिवा और कोई उपाय नहीं था। हेली ने उनके टॉम नामक दास को खरीदना चाहा था। टॉम को न बेचें तो सब-कुछ नीलाम हुआ जाता है। पहले हेली के साथ शेल्वी साहब की उसी कर्ज के विषय में बातें हो रही थीं। अंत में हेली ने टॉम को खरीदने का प्रस्ताव किया और शेल्वी साहब को उसे मानना पड़ा; पर इलाइजा के पुत्र को बेचने न बेचने का अभी तक कुछ निश्चित न हुआ था। इलाइजा जब हेरी की खोज में साहब के कमरे में घुसने लगी, तभी उसके कान में भनक पड़ गई कि हेली उसके लड़के को खरीदना चाहता है। इस पर उसने बाहर आड़ में खड़ी होकर उन लोगों की सारी बातें सुनने का विचार किया था, पर शेल्वी साहब की मेम ने उसे किसी दूसरे काम से पुकार लिया। इससे उसे तुरंत वहाँ से हट जाना पड़ा। अपनी संतान की बिक्री की बात सुनकर वह बहुत ही घबरा गई थी। उसकी छाती धड़कने लगी थी। उसके होश-हवास ठिकाने न रहे। शेल्वी साहब की मेम ने उससे कपड़ा लाने को कहा और उसने लाकर रख दिया एक गिलास पानी। कहा पानी को तो उठा लाई बोतल। इससे मेम ने ऊबकर स्नेह-भरे वाक्यों में उसे डाँटकर कहा - "अरी इलाइजा, आज तुझे क्या हो गया है?"
इस पर इलाइजा सिसकने लगी। शेल्वी साहब की मेम ने पूछा - "बेटी, तुझे हो क्या गया है?"
इलाइजा और रोने लगी। थोड़ी देर बाद बोली - "माँ, बाबा के पास एक दास-व्यवसायी आया है। मैंने उसकी बातें सुनी हैं।"
शेल्वी साहब की मेम बोली - "बस, तू ऐसी ही है। अरे, दास-व्यवसायी आया है तो आने दे! क्या हुआ?"
इस पर इलाइजा घबराकर सिसकती हुई बोली - "माँ, बाबा क्या मेरे हेरी को बेच डालेंगे?"
श्रीमती शेल्वी प्रेम-भरे वचनों से बोली - "अरी, तू तो पागल हो गई है। कौन बेचता है तेरे हेरी को? तू नहीं जानती कि तेरे बाबा दक्षिणी प्रदेश के निर्दयी लोगों के हाथ दास-दासी नहीं बेचा करते। अपने दास-दासियों को वे कभी नहीं बेचेंगे। तू नाहक ही "हेरी-हेरी" करके पागल हो रही है! इधर आ, जल्दी से मेरा जूड़ा बाँध दे।"
इन व्यर्थ की बातों को अनसुनाकर इलाइजा बोली - "माँ, बाबा को मेरे हेरी को मत बेचने देना।"
शेल्वी की मेम ने दया से भरकर कहा - "तू बिल्कुल बेसमझ है। तू चुपचाप बैठी रह। मुझे अपनी संतान बेचना स्वीकार है, पर तेरी संतान नहीं बेचने दूँगी। मैं देख रही हूँ, तू इसी तरह पागल हो जाएगी। हमारे घर कोई आया, बस, तू समझ बैठी कि तेरे लड़के का खरीदार ही है।"
इस समझाने-बुझाने से इलाइजा को कुछ संतोष हुआ और वह मेम के बाल ठीक करने लगी। शेल्वी साहब की मेम बड़ी दयालु थी। उसका हृदय ज्ञान, धर्म और सद्भावों से भरा हुआ था। दास-दासियों को वह अपनी संतान के समान प्यार करती थी। गुलामी की प्रथा से उसे बड़ी घृणा थी। शेल्वी साहब की धर्म पर अधिक श्रद्धा न थी। सारे सत्कर्मों का भार अपनी स्त्री के हाथों में सौंपकर वे निश्चिंत थे। मालूम होता है, उन्होंने समझ रखा था कि बड़े-बड़े सत्कार्य करके उनकी स्त्री जो ढेर का पुण्य इकट्ठा कर रही है, उसी के प्रताप से वे दोनों तर जाएँगे, उन्हें और अलग पुण्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है, उतना ही पुण्य दोनों के लिए काफी होगा। आइए, एक बार शेल्वी साहब के निर्जन घर में चलकर देखें कि वे किस सोच-विचार में पड़े हैं।
शेल्वी साहब को अपने चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार दिखाई दे रहा है। वे सोच रहे हैं कि इलाइजा के पुत्र की बिक्री के विषय में स्त्री से क्या कहें, कैसे कहें। शेल्वी साहब को अपनी मेम का जितना डर है, इलाइजा के दुःखित होने की उतनी फिक्र नहीं। वे केवल भय से व्याकुल हैं। उनकी समझ में नहीं आता कि वे क्या करें। मेम साहब जानती थी कि शेल्वी साहब दयालु हैं। इसी से उन्होंने इलाइजा को सरलता से इस प्रकार धीरज बँधा दिया था। स्वप्न में भी नहीं सोची थी कि उसके स्वामी ऐसा करेंगे। और तो क्या, इलाइजा की बात का उसने जरा भी खयाल न किया। इसी से उसने अपने पति से इन बातों की चर्चा तक न की और उस दोपहर को वह किसी पड़ोसी के यहाँ मिलने चली गई।